जाँच रुकी: जाँच रिपोर्ट को एक साल तक दबाया गया, कोई कार्रवाई नहीं।

जनपद पंचायत की भूमिका: मुख्य कार्यपालन अधिकारी, ओड़गी की निगरानी पर सवाल।

लेखा परीक्षा में चूक: ऑडिट टीम ने लाखों की गड़बड़ी को नजरअंदाज किया।

बड़ा सवाल: जाँच रिपोर्ट के बावजूद कार्रवाई क्यों नहीं? क्या भ्रष्टाचार को संरक्षण देने वाला तंत्र सक्रिय है?


सुरजपुर। सुरजपुर जिले के जनपद पंचायत ओड़गी अंतर्गत ग्राम पंचायत खैरा में फैले भ्रष्टाचार की बदबू अब इतनी तीखी हो चुकी है कि ग्रामीणों से लेकर सामाजिक संगठनों तक हर कोई प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठा रहा है। पंचायत सचिव सिया राम वैश्य पर आर्थिक अनियमितताओं के ठोस प्रमाण सामने आने के बाद भी संबंधित अधिकारी कार्रवाई से बचते दिख रहे हैं। यह पूरा प्रकरण न केवल प्रशासनिक सुस्ती का उदाहरण है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि जब जाँच और प्रमाण मौजूद हों, फिर भी अफसरों की मेहरबानी बरकरार रहे — तो कानून और नियम सिर्फ़ कागज़ों में कैद रह जाते हैं।

बीते दिन, हमर उत्थान सेवा समिति के अध्यक्ष चन्द्र प्रकाश साहू ने इस गंभीर प्रकरण को लेकर जिला पंचायत सूरजपुर, आयुक्त सरगुजा संभाग और पंचायत विभाग रायपुर को विस्तृत शिकायत प्रस्तुत की। शिकायत में उन्होंने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि जिला प्रशासन और जनपद स्तर पर बैठे अधिकारी जानबूझकर कार्रवाई टाल रहे हैं। संस्था की ताजा शिकायत ने एक बार फिर इस पूरे भ्रष्टाचार प्रकरण को सुर्खियों में ला दिया है।


शिकायत के आधार पर जिला पंचायत द्वारा गठित तीन सदस्यीय समिति ने जो तथ्य उजागर किए, उसने पंचायत प्रणाली में बैठे कई जिम्मेदारों की कार्यप्रणाली पर गहरी चोट की है।


जाँच रिपोर्ट के अनुसार वित्तीय वर्ष 2023–24 और 2024–25 में ग्राम पंचायत ने अरविन्द ट्रेडर्स, ओड़गी से की गई सामग्री खरीद में गंभीर अनियमितताएँ कीं। पंचायत सचिव को जिम्मेदार ठहराते हुए समिति ने स्पष्ट कहा कि वर्ष 2024–25 की कैशबुक तक संधारित नहीं की गई। वित्तीय नियमों का यह उल्लंघन न केवल भारी लापरवाही है बल्कि यह छत्तीसगढ़ सिविल सेवा आचरण नियम 1965 के विरुद्ध एक गंभीर आचरणिक अपराध भी है।


जाँच में ₹2,93,668 की राशि के दुरुपयोग की पुष्टि हुई, जिसे न तो वसूल किया गया और न ही किसी प्रकार की दंडात्मक कार्यवाही प्रारंभ की गई।


सबसे चिंताजनक पहलू यह कि जाँच रिपोर्ट जमा होने के बाद लगभग एक वर्ष तक यह मामला फाइलों में धूल खाता रहा। पंचायत सचिव के विरुद्ध कार्रवाई तो दूर, मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायत ओड़गी की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। इतना बड़ा वित्तीय खेल उनकी जानकारी के बिना कैसे हुआ? यदि हुआ, तो निगरानी की जिम्मेदारी किसकी थी? और यदि जानकारी थी तो कार्रवाई क्यों नहीं हुई? इन सवालों के जवाब आज तक किसी अधिकारी ने सार्वजनिक रूप से नहीं दिए हैं, जिससे यह आशंका और मजबूत होती है कि भ्रष्टाचार की रक्षा करने वाला पूरा तंत्र सक्रिय है।


लेखा परीक्षा करने वाले अफसरों की भूमिका भी कठघरे में है। लाखों रुपये के लेन-देन में गड़बड़ी के बावजूद ऑडिट टीम की नजरें कैसे चूकीं? क्या यह मात्र संयोग था या फिर किसी लाभ-हानि के समीकरण का परिणाम? ग्रामीणों और संस्था का आरोप है कि सत्ता और संसाधनों के बीच ऐसा गठजोड़ बन चुका है जो गरीबों की योजनाओं का पैसा भी हड़पने में नहीं हिचकता।


संस्था ने अपनी शिकायत में कहा है कि नियम 3(1) और 3(2) के अनुसार किसी भी सरकारी सेवक का कर्तव्य है कि वह पूर्ण निष्ठा से कार्य करे और भ्रष्ट आचरण से दूर रहे। लेकिन इस मामले में पंचायत सचिव से लेकर जनपद स्तर के अधिकारियों तक, सभी ने इन नियमों की धज्जियाँ उड़ाई हैं। एक वर्ष तक शिकायत दबाए रखना स्वयं में शक्ति के दुरुपयोग और प्रशासनिक लापरवाही का प्रमाण है।


संस्था ने पाँच बिंदुओं पर त्वरित और कठोर कार्रवाई की माँग की है --

1. पंचायत सचिव के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही,

2. ₹2,93,668 की वसूली,

3. एफआईआर की कार्रवाई,

4. मुख्य कार्यपालन अधिकारी की निष्पक्ष जाँच, तथा

संस्था का कहना है कि यदि प्रशासन इस मामले को फिर भी ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश करता है, तो यह ग्रामीणों के विश्वास के साथ धोखा होगा और भ्रष्टाचार को संरक्षण देने जैसा कृत्य माना जाएगा।

ग्राम पंचायत खैरा का यह मामला केवल एक पंचायत का भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि उस पूरी व्यवस्था की पोल खोल रहा है, जहाँ अधिकारी आँख मूँदकर बैठे हैं और दोषी बेखौफ घूम रहे हैं। जब जाँच रिपोर्ट तक कार्रवाई की राह नहीं बना पा रही हो, तो यह समझ लेना चाहिए कि समस्या व्यक्ति की नहीं — प्रशासन की है।