हमर उत्थान सेवा समिति की हुंकार — जंगल में बसे आदिवासियों के लिए सड़क बनाओ सरकार

सुरजपुर /प्रेमनगर। छत्तीसगढ़ सरकार जहां एक ओर “विकास गांवों तक पहुंचाने” के दावे करती है, वहीं सूरजपुर जिले का एक इलाका ऐसा भी है जो आज भी अंधेरे में सिसक रहा है। प्रेमनगर विकासखंड के ग्राम रामेश्वर नगर अंतर्गत सोहर गइई पारा के लगभग 200 से अधिक आदिवासी परिवार जंगलों के बीच फंसे हुए हैं — न सड़क, न परिवहन, न कोई बुनियादी सुविधा। यह बस्ती मुख्य मार्ग से करीब सात किलोमीटर भीतर है, जहां तक आज भी न पक्की और न ही उपयोगी कच्ची सड़क पहुंची है।

बरसात में तो यह इलाका पूरी तरह बाहरी दुनिया से कट जाता है। बच्चों की पढ़ाई ठप पड़ जाती है, बीमारों को अस्पताल ले जाना मौत को दावत देने जैसा हो जाता है। कई बार ग्रामीणों को मरीजों को लकड़ी के खटिये पर लादकर जंगल के पथरीले भरे रास्तों से निकालना पड़ता है। स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र और राशन दुकान — सब गांव से मीलों दूर हैं।

इस गंभीर स्थिति को लेकर हमर उत्थान सेवा समिति के अध्यक्ष चंद्रप्रकाश साहू हैं, ने 30 अक्टूबर 2025 को जिला कलेक्टर सूरजपुर को ज्ञापन सौंपते हुए डब्ल्यू बीएम  सड़क निर्माण की मांग की है। समिति ने कहा है कि वन विभाग इस मार्ग का निर्माण कराया जाए ताकि ग्रामीणों को राहत मिल सके। इस ज्ञापन पर गांव के 37 ग्रामीणों के हस्ताक्षर दर्ज हैं।

समिति अध्यक्ष चंद्रप्रकाश साहू ने कहा, “यह इलाका हाथियों के विचरण क्षेत्र में आता है। अंधेरे और जंगल के पथरीली रास्तों पर चलना यहां के लोगों के लिए खतरे से खाली नहीं। आज़ादी के 75 साल बाद भी अगर कोई बस्ती पैदल चलने तक को सड़क न पाए, तो यह सरकार और प्रशासन दोनों के लिए शर्म की बात है।”

हमर उत्थान सेवा समिति ने ज्ञापन में यह भी मांग की है कि ग्राम पंचायत स्तर पर स्थायी राशन वितरण केंद्र की स्थापना की जाए, क्योंकि वर्तमान में ग्रामीणों को कई किलोमीटर दूर पैदल चलकर राशन प्राप्त करना पड़ता है। बारिश के दिनों में तो यह भी असंभव हो जाता है।

समिति ने जिला कलेक्टर, सरगुजा संभाग के आयुक्त, वन वृत्त अधिकारी और वन मंडल अधिकारी सूरजपुर से तत्काल कार्रवाई की अपील की है। साथ ही चेतावनी दी है कि अगर शीघ्र कदम नहीं उठाए गए, तो ग्रामीण सामूहिक आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।

जनसरोकार से जुड़े इस मुद्दे पर अभी तक न तो किसी जनप्रतिनिधि ने गांव का दौरा किया और न ही विभागीय अधिकारी स्थल निरीक्षण के लिए पहुंचे हैं। सवाल यह है कि जब सरकार “सबका साथ, सबका विकास” का नारा लगाती है, तो फिर सोहर गइई पारा जैसे गांव उसके विकास के नक्शे से बाहर क्यों हैं।