आधुनिक मशीन लगी, लेकिन संचालन ठपसूरजपुर अस्पताल पर उठे सवाल..!

  

चन्द्र प्रकाश साहू

सूरजपुर। छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य विभाग की चरमराती व्यवस्था आज किसी से छिपी नहीं है, जहां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर जिला अस्पतालों तक संसाधनों की कमी, डॉक्टरों की अनुपस्थिति और उपकरणों की खराबी ने लाखों गरीब मरीजों की जिंदगी को मुश्किल में डाल दिया है। राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल हैं, जिससे विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इसी क्रम में, महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े के गृह जिले सूरजपुर में स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्दशा का एक ज्वलंत उदाहरण सामने आया है, जहां जिला अस्पताल की सोनोग्राफी मशीन पिछले दो माह से बंद पड़ी है, जिससे मरीजों को निजी क्लीनिकों में मोटी रकम खर्च करनी पड़ रही है।

खनिज संपदा से समृद्ध और वनांचल से घिरे सूरजपुर जिले में 90 प्रतिशत आबादी अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, जहां अधिकांश लोग निम्न आय वर्ग से संबंधित हैं। प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में तकनीकी उपकरणों की कमी के कारण सस्ते और बेहतर इलाज की उम्मीद लेकर दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों से मरीज जिला चिकित्सालय पहुंचते हैं। लेकिन यहां उपलब्ध आधुनिक मशीनरी के बावजूद प्रबंधन की उदासीनता से मरीजों को निजी क्लीनिकों का रुख करना पड़ रहा है। विशेष रूप से, लाखों रुपये की लागत से लगाई गई सोनोग्राफी मशीन करीब दो माह से धूल फांक रही है, जिससे रोजाना 30 से 40 गर्भवती महिलाओं को जांच के लिए निजी केंद्रों पर 1500 से 2000 रुपये तक खर्च करने पड़ रहे हैं।

 जिला अस्पताल में सोनोग्राफी सुविधा मात्र 250 रुपये में उपलब्ध होने से मरीजों को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद थी, लेकिन अब यह सुविधा बंद होने से सरकारी अस्पताल की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो गए हैं। जांच के लिए बनाए गए कमरे पर ताला लटक रहा है, जबकि बाहर मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. गरिमा सिंह ने बताया कि गर्भवती महिलाओं के लिए सोनोग्राफी जांच अत्यंत आवश्यक है, लेकिन डॉक्टरों की कमी से यह सुविधा प्रभावित हो रही है। उन्होंने कहा, "रोजाना दर्जनों महिलाएं जांच के लिए आती हैं, लेकिन मशीन बंद होने से उन्हें निजी क्लीनिकों पर निर्भर होना पड़ रहा है, जो आर्थिक बोझ बढ़ा रहा है।"

 अस्पताल अधीक्षक डॉ. अजय मरकाम ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि मशीन का संचालन करने वाले रेडियोलॉजिस्ट ने इस्तीफा दे दिया है, जिसके कारण सुविधा दो माह से बंद है। उन्होंने दावा किया कि महीने में एक-दो बार अन्य डॉक्टरों की मदद से जांच कराई जाती है, लेकिन दैनिक आधार पर कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है। डॉ. मरकाम ने कहा, "हम प्रयासरत हैं, लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टर की कमी एक बड़ी समस्या है। जल्द ही इसकी व्यवस्था की जाएगी।"

यह मामला महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े के गृह जिले से जुड़ा होने के कारण और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि मंत्री का विभाग विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की स्वास्थ्य एवं विकास योजनाओं पर केंद्रित है। किसान कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष रामकृष्ण ओझा ने इसे सरकार की विफलता करार देते हुए कहा कि मंत्री के गृह जिले में ही गर्भवती महिलाओं को बुनियादी जांच सुविधा न मिलना दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा, "पूरे संभाग में ऐसी ही बदहाली हैकहीं जांच सुविधा बंद है, तो कहीं दवाइयां उपलब्ध नहीं हो पा रही। कर्मचारियों की हड़ताल से स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा रही है।" उन्होंने मांग की कि तत्काल डॉक्टरों की नियुक्ति की जाए और महिला एवं बाल विकास विभाग इस मुद्दे पर स्वास्थ्य विभाग के साथ समन्वय स्थापित करे।

दूसरी ओर, प्रेमनगर विधायक भूलन सिंह मरावी ने मामले का संज्ञान लेते हुए कहा कि उन्हें अभी जानकारी मिली है। उन्होंने आश्वासन दिया कि वे स्वास्थ्य मंत्री एवं महिला एवं बाल विकास मंत्री से बात कर डॉक्टर उपलब्ध कराएंगे और अस्पताल में डॉक्टरों के न आने के कारणों की जांच भी कराएंगे। श्री मरावी ने कहा, "यह सरकारी सुविधा का मामला है, इसे जल्द सुलझाया जाएगा।"

शासन-प्रशासन बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के दावे तो करते हैं, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही इन प्रयासों पर पानी फेर रही है। सूरजपुर के इस प्रमुख सरकारी अस्पताल में रोजाना हजारों मरीज शासन की योजनाओं पर भरोसा कर पहुंचते हैं। अब सवाल यह है कि कब इस महत्वपूर्ण सुविधा को पुनः चालू किया जाएगा, ताकि गरीब मरीजों, विशेषकर गर्भवती महिलाओं को राहत मिल सके। जिला प्रशासन से इस दिशा में त्वरित कार्रवाई की अपेक्षा की जा रही है।