मनमोहन सिंह, छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल की 13वीं बटालियन के जवान, बीजापुर के तारुड़ कैंप से 11 जनवरी 2025 को रहस्यमय ढंग से लापता।


- दीपा की आखिरी बातचीत: “उस सुबह उन्होंने कहा था, ‘चिंता मत करना, मैं ठीक हूं।’ फिर फोन बंद।”


- तारुड़ कैंप, नक्सल प्रभावित क्षेत्र, जहां हर पल खतरा मंडराता है।


- रहस्य: जिस दिन मनमोहन लापता हुए, कैंप का सीसीटीवी कैमरा बंद था।


- दीपा का सवाल: “कैमरा बंद क्यों था? क्या सच छिपाया जा रहा है?”


- दीपा की सास को कैंसर, दवाइयों का खर्च असहनीय।


चंद्र प्रकाश साहू 

सूरजपुर, 19 अप्रैल 2025: छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के तारुड़ कैंप में तैनात छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल की 13वीं बटालियन के जवान मनमोहन सिंह पिछले तीन महीनों से लापता हैं। 11 जनवरी 2025 को रहस्यमय ढंग से गायब हुए इस जवान का कोई सुराग नहीं मिला। उनकी पत्नी दीपा सिंह और उनके दो मासूम बच्चे हर दिन आंसुओं के साये में जी रहे हैं। सूरजपुर जिले के प्रेमनगर के चन्दननगर गांव में दीपा का छोटा-सा घर अब सन्नाटे और अनिश्चितता का ठिकाना बन चुका है। दीपा की आंखों में अपने पति की याद और अनहोनी का डर हर पल तैरता है। वह हर दरवाजे पर, हर अधिकारी के सामने, अपने पति को ढूंढने की गुहार लगा रही हैं, मगर जवाब में सिर्फ खामोशी मिल रही है।


एक जवान का गायब होना, एक परिवार का टूटना


मनमोहन सिंह, वह नाम जो पांच साल से बीजापुर के घोर नक्सल प्रभावित तारुड़ कैंप में देश की रक्षा के लिए डटकर मोर्चा संभाल रहा था। 27 दिसंबर 2024 को अवकाश के बाद ड्यूटी पर लौटे मनमोहन से उनकी पत्नी दीपा ने 11 जनवरी की सुबह 8 बजे आखिरी बार फोन पर बात की थी। दीपा की आवाज कांपती है जब वह कहती हैं, “उस सुबह उन्होंने कहा था, ‘चिंता मत करना, मैं ठीक हूं।’ फिर उनका फोन बंद हो गया।” उसी दिन कैंप से एक अन्य जवान ने बताया कि मनमोहन ड्यूटी के दौरान गायब हो गए। कैंप अधिकारियों का दावा है कि मनमोहन मानसिक रूप से बीमार थे और कैंप की फेंसिंग तार पार कर भाग गए। लेकिन दीपा का दिल इस बात को मानने को तैयार नहीं। वह कहती हैं, “मेरे पति स्वस्थ थे, ड्यूटी के प्रति समर्पित थे। वह नक्सलियों से लोहा लेने वाले जवान थे, क्या वह यूं ही भाग जाएंगे?”


नक्सल क्षेत्र की खौफनाक सच्चाई और सीसीटीवी का रहस्य


तारुड़ कैंप, जहां हर दिन नक्सलियों और सुरक्षा बलों के बीच जंग का माहौल रहता है। दीपा को डर है कि उनके पति के साथ कोई भयानक हादसा तो नहीं हुआ। वह कहती हैं, “15 जनवरी को मैं बीजापुर कैंप गई। वहां मुझे कोई साफ जवाब नहीं मिला। बस इतना कहा गया कि वह मोर्चा ड्यूटी से गायब हैं। नक्सलियों का इलाका है, क्या कोई बता सकता है कि मेरे पति सुरक्षित हैं?” सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि जिस दिन मनमोहन लापता हुए, कैंप का सीसीटीवी कैमरा बंद था। यह संयोग नहीं, दीपा के लिए एक डरावना सवाल है। “अगर मेरे पति भागे, तो सीसीटीवी में कुछ तो दिखता। कैमरा बंद क्यों था? क्या कोई सच छिपा रहा है?” दीपा की यह पुकार हर उस इंसान के दिल को झकझोर देती है जो इसे सुनता है।




 एक परिवार की बेबसी और टूटते सपने


मनमोहन सिंह के गायब होने से दीपा और उनके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। दीपा की सास को कैंसर है, और हर महीने दवाइयों का खर्च उनके लिए पहाड़ जैसा है। दीपा के दो बच्चे, 10 साल का बेटा और 8 साल की बेटी, हर दिन अपने पिता के बारे में पूछते हैं। “मम्मी, पापा कब आएंगे?” इस सवाल का जवाब देते-देते दीपा की आंखें सूख चुकी हैं, मगर दिल हर बार टूट जाता है। दीपा कहती हैं, “मेरे पति ही घर के एकमात्र कमाने वाले थे। उनकी तनख्वाह से बच्चों की पढ़ाई, सास की दवाइयां, और घर का खर्च चलता था। अब हमारे पास कुछ नहीं बचा। खेत भी इतने नहीं कि गुजारा हो सके।”


दर-दर की ठोकरें और खोखले आश्वासन


दीपा ने अपने पति को ढूंढने के लिए रायपुर से लेकर सूरजपुर, सरगुजा तक हर उस दरवाजे को खटखटाया, जहां से उन्हें उम्मीद थी। उन्होंने मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, और कई नेताओं को पत्र लिखे। सूरजपुर एसएसपी को सौंपे गए पत्र के बाद बीजापुर एसपी से जांच शुरू करने की बात तो कही गई, मगर तीन महीने बाद भी कोई सुराग नहीं। दीपा कहती हैं, “हर बार आश्वासन मिलता है, लेकिन मेरे पति का पता नहीं चलता। क्या एक जवान की इतनी कीमत नहीं कि उसे ढूंढा जाए?”


दीपा की मार्मिक अपील


दीपा की आंखों में आंसुओं के बीच एक उम्मीद की किरण अब भी टिमटिमा रही है। वह कहती हैं, “मुझे मेरे पति चाहिए। अगर वह सुरक्षित हैं, तो उन्हें घर लौटा दें। अगर कुछ हुआ है, तो सच बता दें। यह अनिश्चितता हमें हर पल मार रही है।” उनकी आवाज में एक सैनिक की पत्नी का गर्व और एक मां का दर्द एक साथ गूंजता है। वह कहती हैं, “मेरे पति ने देश के लिए अपनी जान जोखिम में डाली। क्या उनके परिवार को सच जानने का हक नहीं?”


प्रशासन की चुप्पी और अनुत्तरित सवाल


11 जनवरी को बीजापुर के तारलागुड़ा थाने में मनमोहन की गुमशुदगी दर्ज हुई, मगर जांच में कोई प्रगति नहीं। सीसीटीवी का बंद होना, कैंप अधिकारियों का मानसिक बीमारी का दावा, और नक्सल क्षेत्र की खतरनाक परिस्थितियां—यह सब मामले को और रहस्यमय बनाता है। सवाल उठता है कि क्या एक जवान, जो नक्सलियों से लोहा ले रहा था, यूं ही गायब हो सकता है? क्या कैंप की सुरक्षा में चूक हुई? या कोई ऐसी सच्चाई है, जो सामने नहीं आ रही?


# समाज और प्रशासन की जिम्मेदारी


मनमोहन सिंह की कहानी सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि उन तमाम जवानों की अनकही दास्तां है, जो अपनी जान दांव पर लगाकर हमारी रक्षा करते हैं। दीपा की पुकार हर उस इंसान तक पहुंचनी चाहिए, जिसके सीने में देशभक्ति की धड़कन है। प्रशासन से अपील है कि इस मामले की गहन और निष्पक्ष जांच हो। सीसीटीवी के बंद होने की सच्चाई सामने आए। समाज से गुहार है कि दीपा के दर्द को समझें और उनकी आवाज को बुलंद करें।


दीपा आज भी अपने पति के लौटने की आस में जी रही हैं। उनके बच्चों की मासूम आंखें हर दिन दरवाजे की ओर टकटकी लगाए रहती हैं। क्या हमारा समाज और प्रशासन मिलकर उस जवान को ढूंढ नहीं सकता, जिसने अपनी जिंदगी देश को समर्पित कर दी? दीपा की यह करुण पुकार अनसुनी नहीं रहनी चाहिए। आइए, हम सब मिलकर एक सैनिक की पत्नी को उसका हक दिलाएं—उसका पति, उसका सुकून, और उसके परिवार का भविष्य।