हमर उत्थान सेवा समिति ने कहा साफ-सुथरा काम है तो डर कैसा ?
सुरजपुर। जिले की शिक्षा व्यवस्था पर उठे सवालों और निजी स्कूलों की मनमानी पर लोक विचार न्यूज द्वारा प्रकाशित खबर का बड़ा असर सामने आया है। हमारे द्वारा “शिक्षा विभाग की ढिलाई या मिलीभगत?” शीर्षक से उजागर किए गए फर्जीवाड़े, मानक-विहीन संचालन और निरीक्षणहीन सिस्टम ने प्रशासन को झकझोरा है। इसी समाचार को संज्ञान में लेते हुए जिला कलेक्टर ने पारदर्शिता बढ़ाने के लिए शिक्षा विभाग को यह निर्देश दिए कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) के तहत जिले के निजी स्कूलों में दाखिला लिए बच्चों की सूची और संबंधित विवरण सार्वजनिक किए जाएं। लेकिन प्रशासन की इस पारदर्शी पहल से निजी स्कूल संचालकों में हड़कंप मच गया है और अब स्कूल संचालक गोपनीयता की आड़ लेकर आदेश को रोकने की कोशिश में जुट गए हैं।
जैसे ही यह जानकारी सामने आई, अशासकीय विद्यालय शिक्षण संचालक कल्याण संघ सक्रिय हो गया और जिला शिक्षा अधिकारी सहित कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर मांग की कि RTE के तहत दर्ज बच्चों की सूची जिला वेबसाइट पर सार्वजनिक न की जाए। संघ ने यह तर्क दिया कि बच्चों, अभिभावकों और कर्मचारियों की जानकारी सार्वजनिक करना “निजता के अधिकार” का हनन है। पत्र में यह भी लिखा गया कि ऐसा करने से निजी स्कूलों की “गोपनीयता” भंग होगी। यह तर्क सुनकर सवाल खड़ा होता है कि आखिर शिक्षा के नाम पर चल रहे संस्थानों को ऐसी कौन-सी गोपनीयता बचानी है जो जनता और प्रशासन से छिपाने योग्य है? जब सरकार प्रति बच्चा हजारों रुपये निजी विद्यालयों को देती है, तो यह जानना जनता का स्वाभाविक अधिकार है कि किस स्कूल में कौन-कौन बच्चे RTE के अंतर्गत पढ़ रहे हैं और वे वास्तविक हैं या कागजों में ही जीवित हैं।
पिछले कई वर्षों से आरोप लगता रहा है कि कई निजी स्कूल फर्जी बच्चों के नाम दर्ज करके सरकारी राशि लेने का खेल खेलते हैं। सूची सार्वजनिक हुई तो इन “घोस्ट स्टूडेंट्स” का सच सामने आ सकता है। वहीं यह भी साफ हो जाएगा कि RTE का लाभ वास्तव में गरीब और पात्र बच्चों को मिल रहा है या फिर रसूखदार लोग, स्कूलों की मिलीभगत से अपने बच्चों का नाम गलत तरीके से चढ़वाकर हकदारों का हक मार रहे हैं। ऐसे में निजी स्कूलों द्वारा गोपनीयता का तर्क देना बिलकुल अविश्वसनीय और संदिग्ध लगता है। सच तो यह है कि यदि स्कूल पूरी ईमानदारी और नियमों के अनुसार चल रहे हैं तो उन्हें पारदर्शिता से डरने की बिल्कुल आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
कलेक्टर एक तरफ शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना चाहते हैं, लेकिन दूसरी तरफ निजी स्कूलों की यह लॉबी प्रशासन पर दबाव बनाकर अपने मनमाने संचालन को बरकरार रखने का प्रयास कर रही है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि जिला प्रशासन पारदर्शिता के अपने निर्णय पर कायम रहता है या फिर निजी स्कूल संघ के दबाव में आकर कदम पीछे खींचता है। इस बीच हमर उत्थान सेवा समिति और जिले के जागरूक नागरिकों ने स्पष्ट कहा है कि जो स्कूल ईमानदार हैं, उन्हें किसी भी प्रकार की जानकारी सार्वजनिक करने से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। लेकिन जो स्कूल गोपनीयता की दुहाई देकर जानकारी छिपाना चाहते हैं, उनके इरादों पर सवाल उठना स्वाभाविक है। यह पूरा प्रकरण इस बात का संकेत है कि कहीं न कहीं शिक्षा व्यवस्था के भीतर गहरी गड़बड़ियां दबी हैं, और पारदर्शिता का मात्र एक आदेश ही उन्हें बेनकाब करने के लिए पर्याप्त साबित हो रहा है।