गंभीर लापरवाही और गहरी जड़ें जमाता भ्रष्टाचार
32 निजी स्कूलों पर खानापूर्ति कार्रवाई, लेकिन शिक्षा व्यवस्था अब भी बदहाल
सुरजपुर। जिले की शिक्षा व्यवस्था इन दिनों गंभीर सवालों के घेरे में है। शिक्षा विभाग द्वारा हाल ही में 32 निजी स्कूलों पर की गई कार्रवाई को प्रशासन ने बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश किया, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग है। यह कदम अभिभावकों और स्थानीय नागरिकों की नजर में महज़ औपचारिकता साबित हो रहा है, क्योंकि जिले में आज भी बड़ी संख्या में निजी स्कूल अवैध और मानक-विहीन परिस्थितियों में संचालित हो रहे हैं।
कई निजी स्कूल 1–2 छोटे कमरों में कक्षा 1 से 5 तक की पढ़ाई कराते हैं। सुविधाओं का अभाव, भीड़भरी कक्षाएँ, असुरक्षित वातावरण और B.Ed तथा D.Ed जैसी योग्यता न रखने वाले शिक्षकों के भरोसे बच्चों का भविष्य सौंपा जा रहा है। इसके बावजूद विकासखंड शिक्षा अधिकारी और जिला शिक्षा अधिकारी की ओर से न तो नियमित निरीक्षण किया जाता है और न ही किसी ठोस कार्रवाई की मिसाल पेश की गई है। यही कारण है कि शिक्षा व्यवस्था लापरवाही और उदासीनता के बीच लगातार कमजोर होती जा रही है।
हाल में बंद किए गए 32 स्कूलों पर की गई कार्रवाई को लेकर लोगों ने सवाल उठाए हैं। अभिभावकों का कहना है कि जिले में दर्जनों ऐसे संस्थान अब भी चल रहे हैं जो शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) के तहत हर साल लाखों रुपये का भुगतान लेते हैं, लेकिन न तो कक्षाएँ मानक के अनुसार हैं और न सुविधाएँ। आरोप यह भी है कि कई स्कूल फर्जी उपस्थिति और बढ़ी हुई बच्चों की संख्या दिखाकर शासन से मोटी राशि वसूलते हैं। स्थानीय नागरिकों का साफ कहना है कि इस खेल में स्कूल संचालकों से लेकर विभाग स्तर तक की मिलीभगत शामिल रहती है।
इस लापरवाही का सबसे भयावह और शर्मनाक उदाहरण रामानुजनगर ब्लॉक के नारायणपुर गांव में सामने आया, जहाँ एक निजी स्कूल के शिक्षक ने होमवर्क न करने पर एक बच्चे को रस्सी से पेड़ पर लटका दिया। यह घटना न सिर्फ मानवीय संवेदनाओं का हनन है, बल्कि यह बताती है कि विभागीय उदासीनता ने शिक्षा व्यवस्था को कितना असुरक्षित बना दिया है। अगर योग्य शिक्षकों की नियुक्ति, नियमित निरीक्षण और आवश्यक कार्रवाई समय पर की जाती, तो ऐसी अमानवीय घटना शायद कभी न होती।
जिले में कई स्कूल अभी भी कागजों में सक्रिय दिखाए जाते हैं, जबकि वास्तविक रूप से वे बंद हैं या 1–2 कमरों में औपचारिकता निभा रहे हैं। निरीक्षण रिपोर्टें हर बार संतोषजनक कैसे बताई जाती हैं यह सवाल जिले की जनता बार-बार उठा रही है। लोगों का मानना है कि इस पूरी व्यवस्था में भ्रष्टाचार और “सेटिंग” ने सबसे बड़ी भूमिका निभाई है।
इस पूरे मामले पर हमर उत्थान सेवा समिति ने गहरी चिंता व्यक्त की है। समिति ने कहा है कि जिले में शिक्षा की गुणवत्ता लगातार गिर रही है और बच्चों की सुरक्षा की अनदेखी हो रही है। समिति ने प्रशासन से सभी निजी स्कूलों का सघन व निष्पक्ष निरीक्षण कराने, मानकों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने और दोषी स्कूल संचालकों व विभागीय अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई की मांग की है। समिति ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ, तो संगठन दस्तावेज़ी शिकायतों और जन पहल के माध्यम से इस मुद्दे को बड़े स्तर पर उठाएगा।
अब सवाल यही है कि क्या इस बार शिक्षा विभाग दिखावे से आगे बढ़कर असली सुधार की दिशा में कदम बढ़ाएगा? या फिर यह कार्रवाई भी कागजों में दबी रह जाएगी? जिले की जनता पारदर्शी जांच, सुरक्षित शिक्षा और भ्रष्टाचार पर सख्त नियंत्रण की मांग कर रही है। अगर सिस्टम ने फिर उदासीनता दिखाई, तो इसका सबसे बड़ा नुकसान आने वाली पीढ़ी को उठाना पड़ेगा।