मेहनत का पीला सोना अटका, किसान बोले :- ‘नुकसान हुआ तो जिम्मेदार कौन ?
सुरजपुर। जिले में इस समय दो बड़े सरकारी अभियान एक साथ चल रहे हैं—मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) और धान खरीदी। दोनों प्रक्रियाओं का सीधा दबाव एक ही वर्ग पर पड़ रहा है—किसानों पर। खेत से समितियों तक दिनभर चक्कर काटते किसान इस बार अभूतपूर्व संकट से गुजर रहे हैं।
जिले के अधिकांश गांवों में किसान सुबह खेत देखकर निकलते हैं और दोपहर से शाम तक समिति व पटवारी के कार्यालय के चक्कर काटते रहते हैं। सबसे बड़ी समस्या है—रकबा सत्यापन का न होना। कई किसानों का रकबा कम कर दिया गया है, कई के खातों में रकबा ही शून्य दिख रहा है, जिससे टोकन कटना रुक गया है। घर–घर में क्विंटलों धान रखा है, पर बेचने का रास्ता बंद।
इस पूरी व्यवस्था पर किसानों की बेचैनी तब और बढ़ गई जब सरकार ने घोषणा की कि 30 और 31 नवंबर संशोधन के अंतिम दिन होंगे। इतने कम समय में रकबा सुधार, भौतिक सत्यापन और अन्य प्रक्रियाएँ पूरी होना लगभग असंभव माना जा रहा है। किसानों का कहना है कि अगर यह समयसीमा नहीं बढ़ाई गई, तो हजारों किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ेगा।
इधर पटवारी भी दोहरी मार झेल रहे हैं—एक ओर SIR अभियान, दूसरी ओर किसानों का लगातार दबाव। कई किसानों ने आरोप लगाया कि पटवारियों द्वारा कॉल रिसीव न करना और संदेशों का जवाब न देना अब आम बात हो गई है। ग्रामीणों के अनुसार, “मानो वे इस संकट काल में खुद ही भगवान हो गए हों।”
सबसे गंभीर सवाल यह है कि सरगुजा संभाग से ही मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय आते हैं, इसी संभाग से कृषि मंत्री रामविचार नेताम, और जिले से महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े। इतने बड़े राजनीतिक प्रतिनिधित्व के बावजूद किसानों की समस्या जस की तस बनी हुई है, जिससे मैदान में आक्रोश साफ दिखाई दे रहा है।
इस बीच प्रशासन का रवैया भी संदेह पैदा करता है। हमारी टीम ने जिला प्रशासन का पक्ष जानने के लिए अपर कलेक्टर जगन्नाथ वर्मा से मुलाकात का प्रयास किया, लेकिन उन्होंने “व्यस्त हूँ” कहकर दूरी बना ली। बाद में कॉल और संदेश से राय जानने की कोशिश की गई, पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। प्रशासन की यह चुप्पी किसानों की चिंता और बढ़ा रही है।
यदि समय रहते इस मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया गया, तो जिले में बेहद विकट स्थिति उत्पन्न हो सकती है। रकबा सुधार की समयसीमा बेहद कम, SIR का दबाव जारी, धान खरीदी ठप, किसान त्रस्त और प्रशासन मौन—यह स्थिति जिले के कृषि चक्र को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है।
किसानों का एक ही प्रश्न है “हमारा रकबा कब सुधरेगा, हमारा धान कौन खरीदेगा, और अगर नुकसान हुआ…तो जिम्मेदार कौन होगा?”