राशन आधार वोटर सब शून्य: सुरजपुर में मूलभूत अधिकारों से वंचित असली नागरिक
- पीढ़ियों से बसने वाले आज भी ‘रिकॉर्ड में शून्य’: सरकारी उदासीनता ने आदिवासियों को हाशिए पर धकेला
- सुरजपुर में सरकारी पहचान से वंचित आदिवासी SIR की कड़ाई के बीच मूलनिवासियों की नागरिकता पर उठे सवाल
सुरजपुर। जिले में इन दिनों मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया तेज़ है। बूथ–स्तर पर वोटर लिस्ट शुद्धिकरण, संदिग्ध मतदाताओं की पहचान और चिन्हांकन का कार्य प्रशासनिक सख़्ती के साथ जारी है। फर्जी मतदाताओं के नाम हटाए जा रहे हैं और वोटर कार्ड की जांच पड़ताल में कोई कोताही नहीं बरती जा रही। लेकिन इसी समय जिले के प्रेमनगर विकासखंड से ऐसी विडंबनापूर्ण और चिंताजनक तस्वीर सामने आई है, जो प्रशासनिक उपेक्षा और दोहरी नीति की गहरी पोल खोलती है।
प्रेमनगर ब्लॉक के कई ग्राम पंचायतों में आज भी सैकड़ों आदिवासी परिवार विशेषकर पण्डो और धनुहार जनजाति ऐसे हैं जिनके पास देश की सबसे बुनियादी पहचान आधार कार्ड तक उपलब्ध नहीं है। पहचान पत्र न होने के कारण इन परिवारों का न तो राशन कार्ड बना है, न वोटर आईडी कार्ड, और न ही किसी सरकारी योजना का लाभ मिल पा रहा है। वृद्धों से लेकर अधेड़ उम्र के ग्रामीण तक, पीढ़ियों से इन गांवों में निवास करने के बावजूद सरकारी रिकॉर्ड में “शून्य” हैं। इस ओर अनुभागीय अधिकारी ध्यान कभी दिए और ना ही आदिवासी विभाग के अफसर कभी इस ध्यान दिए, प्रशासन की मंशा अगर रहता तो आज ये आदिवासी परिवारो के पास आधार कार्ड जैसे जरूरी दस्तावेज जरूर होता।
अफसरों ने कभी नहीं समझी इनकी पीड़ा
ग्रामीणों के अनुसार कई बार पंचायत सचिवों और स्थानीय अधिकारियों एसडीएम तहसीलदार, सहायता आयुक्त से आधार कार्ड एवं राशन कार्ड बनवाने की गुहार लगाई गई, लेकिन आश्वासन और सूची तैयार करने का दावा हमेशा कागजों तक ही सीमित रहा। न तो शिविर लगे, न पंजीकरण हुआ, और आज भी ये परिवार पहचान के इंतजार में सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। वहीं दूसरी ओर SIR के नाम पर वोटर सूची की छानबीन जारी है, लेकिन जिन नागरिकों का नाम पहली बार सूची में शामिल होना चाहिए था, उनकी ओर देखने तक की फुरसत प्रशासन को नहीं है।
आधार नहीं, वोटर नहीं, राशन नहीं तो क्या उन्हें प्रशासन विदेशी, बांग्लादेशी या घुसपैठिया बताएगी..?
सबसे गंभीर सवाल उन परिवारों की नागरिकता पर उभरने लगा है। ग्रामीणों की पीड़ा है कि यदि आधार नहीं, वोटर नहीं, राशन नहीं तो क्या उन्हें प्रशासन विदेशी, बांग्लादेशी या घुसपैठिया मानकर खारिज कर देगा? जबकि सच्चाई यह है कि यही समुदाय पीढ़ियों से यहां बसे हैं, जंगलों और पहाड़ियों के बीच मेहनत मजदूरी और खेती कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। देश में जन्मे नागरिकों को पहचान से वंचित रखना शासन प्रशासन की सबसे बड़ी चूक है।
सरकार की योजनाएँ गरीबों और वंचितों तक पहुंचाने का दावा कागज़ों में दम भरती है, मगर ज़मीनी हकीकत बिल्कुल उलट है। विकास और डिजिटल इंडिया के नारों के बीच प्रेमनगर के ये गाँव आज भी पहचान के लिए संघर्ष कर रहे हैं यह स्थिति केवल प्रशासनिक लापरवाही नहीं, सामाजिक न्याय पर गहरा प्रहार है।
जरूरत इस बात की है कि जिला प्रशासन विशेष अभियान चलाकर इन आदिवासी परिवारों का आधार पंजीकरण करवाए, राशन कार्ड और वोटर आईडी तत्काल जारी कराए तथा पंचायत स्तर पर जवाबदेही सुनिश्चित करे। उक्त समुदायों को पहचान से वंचित रखना सिर्फ प्रशासनिक भूल नहीं, बल्कि लोकतंत्र के मूल सिद्धांत “हर नागरिक समान” पर सवाल है।
आधार कार्ड नहीं है तो फिर राशन कार्ड भी नहीं
यदि सरकार वास्तव में “सबका साथ–सबका विकास” का अर्थ समझती है, तो सुरजपुर में पहचान की प्रतीक्षा कर रहे इन मूलनिवासियों की आवाज़ अनसुनी नहीं रहनी चाहिए। लोकतंत्र की बुनियाद वोट है और वोट सिर्फ तभी संभव है जब नागरिक को पहचान प्राप्त हो। आज सवाल सिर्फ आधार वोटर का नहीं, बल्कि सम्मान और अस्तित्व का है। यह समस्या सिर्फ प्रेमनगर ब्लॉक तक सीमित नहीं। नगर पंचायत क्षेत्र में भी एक दर्जन से अधिक ऐसे लोग होने की जानकारी है जिनका आधार कार्ड आज तक नहीं बन पाया है। इनका आधार कार्ड नहीं है तो फिर राशन कार्ड भी नहीं है। जो बाजार से 25- 30 रुपए किलो बाजार से राशन खरीदने को मजबूर है।