सुरजपुर/प्रेमनगर। सरकारी योजनाएँ जनता के टैक्स के पैसों से इसलिए बनाई जाती हैं कि शिक्षा, सुरक्षा और विकास मजबूत हो सके, लेकिन स्थिति उलटी होती दिखाई दे रही है। स्कूल शिक्षा मद से बाउंड्रीवाल निर्माण के नाम पर स्वीकृत राशि का दुरुपयोग सामने आने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि भ्रष्टाचार अब व्यवस्था नहीं, बल्कि प्रशासनिक संस्कृति का हिस्सा बन चुका है। जनपद पंचायत प्रेमनगर के ग्राम पंचायत जयपुर में विद्यालय परिसर की बाउंड्रीवाल के लिए करीब 200 मीटर निर्माण स्वीकृत कराया गया था, जबकि वास्तविक निर्माण सिर्फ 60–70 मीटर तक ही किया गया है। कागज़ों में विकास पूरा दिखाकर, ज़मीन पर काम सीमित रखना — सिस्टम की एक और ‘कमाई वाली तकनीक’ सामने आई है।
नियमों के विरुद्ध एक और बड़ा खेल इस मामले में सामने आया है। नव निर्माण की राशि, जो नई दीवार खड़ी करने के लिए दी गई थी, उसे खर्च करने के नाम पर पुराने बाउंड्रीवाल को अनावश्यक रूप से तोड़कर 3–4 ईंटें बढ़ाकर मरम्मत की गई। जबकि पुरानी दीवार तकनीकी रूप से ठीक थी और उसे छेड़ने की कोई आवश्यकता नहीं थी। विशेषज्ञों के अनुसार नव निर्माण के बजट का मरम्मत में उपयोग सीधा वित्तीय अनियमितता और नियम उल्लंघन है, फिर भी इसे अपने तरीके से लागू किया गया। यह दर्शाता है कि योजना शुरुआत से ही भुगतान बढ़ाने और काम घटाने के उद्देश्य से डिजाइन की गई थी।
ग्रामीणों का कहना है कि पूरा मामला इंजीनियर/एसडीओ, पंचायत सचिव और ठेकेदार की साझेदारी में चल रहे कमीशन मॉडल जैसा है, जहां गुणवत्ता का कोई मूल्य नहीं और बिल का मूल्य 100%। निर्माण सामग्री बेहद घटिया है, निगरानी नाम मात्र की है और काम की गति व तकनीकी मानकों को देखकर समझना मुश्किल नहीं कि भ्रष्टाचार पहले दिन से तय था। ग्रामीणों ने कहा कि “छात्रों की सुरक्षा या स्कूल के विकास की चिंता किसी को नहीं, चिंता सिर्फ कमीशन के प्रतिशत की है।”
इस अनियमितता ने प्रशासनिक जवाबदेही पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। ग्रामीणों ने पूछा है कि जब कार्य अधूरा है, गुणवत्ता खराब है और भुगतान का खेल तेजी से चल रहा है, तो जनपद स्तर पर बैठे सीईओ की चुप्पी क्यों है? निरीक्षण क्यों नहीं हुआ? क्या जनपद कार्यालय को जानकारी होने के बावजूद अनदेखी की गई? या फिर यह सारा मामला बड़े संरक्षण में चल रहा है? जनपद स्तर पर मौन संकेत देता है कि या तो निगरानी नहीं की गई या फिर जानबूझकर नहीं की गई।
शिकायतकर्ताओं ने जिला पंचायत सूरजपुर को भेजे गए पत्र में पूरे कार्य की स्वतंत्र तकनीकी जांच की मांग की है। साथ ही माप-पुस्तिका (एमबी) की सत्यता की जांच, दोषी तकनीकी अधिकारियों और पंचायत सचिव पर आर्थिक एवं अनुशासनात्मक कार्रवाई तथा संबंधित ठेकेदार पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है ताकि शिक्षा मद का उपयोग वास्तविक उद्देश्य बच्चों की सुरक्षा और शैक्षणिक वातावरण में हो सके, न कि निजी लाभ के लिए।
यह मामला केवल एक पंचायत का विवाद नहीं, बल्कि उस काली सच्चाई का आईना है जिसमें कागज़ों पर विकास दौड़ता है और ज़मीन पर रेंगता है। शिक्षा मद जैसी संवेदनशील राशि, जिसका उद्देश्य स्कूलों की सुरक्षा और बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करना है, वही राशि प्रशासनिक मिलीभगत की भेंट चढ़ रही है। अब पूरा क्षेत्र इस प्रतीक्षा में है कि दोषियों पर कार्रवाई होगी या नहीं। आने वाला समय यह तय करेगा कि जिला प्रशासन भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख अपनाता है या एक बार फिर फाइलों के ढेर में किसी घोटाले को दफना दिया जाएगा।