प्रेमनगर विकासखण्ड के बाकिरमा और कंचनपुर समितियों में किसानों का धैर्य टूटने लगा, रकबा कटौती और बीज-खाद की किल्लत से जूझ रहे ग्रामीण
प्रेमनगर। जैसे-जैसे प्रदेश में धान खरीदी का समय नज़दीक आ रहा है, वैसे-वैसे किसानों की चिंता भी बढ़ती जा रही है। नवंबर का महीना किसानों के लिए मेहनत और उम्मीद का समय होता है — खेतों से धान की खुशबू आती है, ट्रैक्टरों की गूंज सुनाई देती है और सहकारी समितियों में खरीदी की तैयारियाँ जोरों पर रहती हैं। लेकिन इस बार नज़ारा बिल्कुल उल्टा है। प्रेमनगर विकासखण्ड के ग्राम बाकिरमा और कंचनपुर जैसे कृषि प्रधान गांवों में समितियों के दफ्तरों में सन्नाटा पसरा है, दरवाज़ों पर ताले लटके हैं और किसान अपने काम के लिए भटक रहे हैं।
प्रदेश शासन द्वारा घोषित तिथि के अनुसार 15 नवम्बर से समर्थन मूल्य पर धान खरीदी शुरू होनी है। इसके लिए सहकारी समितियों की मशीनें, तौल कांटे, गोदाम, तिरपाल और सभी सामग्रियाँ तैयार होनी चाहिए थीं, परंतु समिति के कर्मचारी हड़ताल पर जाने से यह सारी व्यवस्था अधर में लटक गई है। परिणामस्वरूप किसानों की मेहनत से उपजा अनाज बेचने का रास्ता अटक गया है।
ग्राम बाकिरमा की आदिमजाति सेवा सहकारी समिति में करीब 1900 किसान पंजीकृत हैं, वहीं समीपवर्ती कंचनपुर समिति में 857 किसान जुड़े हुए हैं। इन समितियों का दायित्व है किसानों को समय पर बीज, खाद, ऋण सुविधा और खरीदी की व्यवस्था देना, परंतु पिछले कुछ हफ्तों से समितियों में ताले लटके हुए हैं। समिति कर्मचारी आंदोलन पर हैं, जिससे खाद और गेहूं बीज का वितरण पूरी तरह बंद है। किसान जब गेहूं की बुआई के लिए समिति पहुँचते हैं, तो उन्हें निराशा ही हाथ लगती है। खेतों में गेहूं की बुआई का समय आ चुका है, लेकिन समिति से बीज नहीं मिलने के कारण कई किसान अपनी अगली फसल की तैयारी नहीं कर पा रहे हैं।
किसानों ने बताया कि इस वर्ष उनके खाते में दर्ज खेती का रकबा घटा दिया गया है। कई किसानों की जमीन का एक हिस्सा रिकॉर्ड से गायब दिख रहा है, जिसके चलते वे अपने पूरे उत्पादन का पंजीयन नहीं करा पा रहे हैं। किसान राजस्व विभाग और समिति कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन अब तक समस्या का समाधान नहीं हुआ है।
धान खरीदी शुरू होने में अब कुछ ही दिन शेष हैं, लेकिन समितियों में किसी प्रकार की तैयारियाँ पूर्ण नहीं हुई हैं। तौल कांटा मशीनों की टेस्टिंग नहीं हुई, गोदामों की सफाई व मरम्मत नहीं की गई, तिरपाल, सूजी, सुतली, वरदान जैसी आवश्यक वस्तुएँ उपलब्ध नहीं हैं और खरीदी मशीनें बंद पड़ी हैं जिनकी तकनीकी जांच भी नहीं हुई है। स्थानीय किसानों का कहना है कि अगर इसी हाल में खरीदी शुरू हुई तो पहले ही दिन भारी अव्यवस्था हो जाएगी।
समिति में ऋण दस्तावेज तैयार करने, लिमिट बनाने और एनसीएल की प्रक्रिया भी हड़ताल के कारण ठप पड़ी है। किसान जिनकी ऋण सीमा नवीनीकरण की प्रक्रिया चल रही थी, वे अब बैंक या समिति से धन नहीं निकाल पा रहे हैं। इससे आगामी फसल गेहूं की तैयारी पर भी असर पड़ रहा है और किसानों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है।
इधर मौसम विभाग ने आने वाले दिनों में बे-मौसम बारिश की संभावना जताई है। किसानों को डर है कि यदि खरीदी केंद्रों की तैयारी अधूरी रही, तो खुले में रखा धान भीग जाएगा और नुकसान बढ़ेगा। ग्राम बाकिरमा के एक किसान ने कहा — “हमने खेत में मेहनत की, अब सरकार से उम्मीद थी कि समिति से आसानी से धान बिक जाएगा। लेकिन समिति में ताला है, कोई सुनने वाला नहीं। गेहूं का बीज और खाद भी नहीं मिला। आखिर किसान क्या करे?”
ग्रामीणों ने शासन और प्रशासन से अपील की है कि जल्द से जल्द हड़ताल समाप्त कराई जाए या वैकल्पिक व्यवस्था बनाई जाए, ताकि किसानों को राहत मिल सके। साथ ही रकबा सुधार और बीज वितरण की प्रक्रिया शीघ्र प्रारंभ की जाए। प्रेमनगर और आसपास के गांवों में अब किसानों की एक ही चिंता है “धान बेचने का समय आया, मगर समिति बंद पड़ी है।” अगर स्थिति जल्द नहीं सुधरी, तो खरीदी व्यवस्था पर बड़ा संकट खड़ा हो सकता है।